विषय-सूचि
- सिन्धुघाटी सभ्यता व काल निर्धारण
- सिन्धुघाटी सभ्यता संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार
सिन्धुघाटी सभ्यता के प्रमुख खोज
सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रमुख नगर
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का जीवन
सिंधु घाटी सभ्यता
- रेडियोकार्बन डेटिंग C 14 तकनीक के आधार पर हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण :-(2500 BC -1750 BC )
*सिन्धुघाटी सभ्यता संबंधी
महत्वपूर्ण तथ्य*
चार्ल्स मेसन(1826):हड़प्पा
- 1826 - सर्वप्रथम चार्ल्स मेसन ने हड़प्पा नामक स्थल पर एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिलने के प्रमाण की पुष्टि की थी।
भारतीय पुरातात्विक एवं सर्वेक्षण विभाग(Archaeological survey of India:ASI)
- कार्य- भारत मे प्रागेतिहासिक स्थलों को खोजने का कार्य
- स्थापना- 1861
- संस्थापक- अलेक्जेंडर कनिंघम
- वायसराय- लार्ड केनिंग
- भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना का श्रय- लार्ड कर्जन
- भारतीय पुरातत्व के कार्य का प्रारंभ- विलियम जोन्स(1784)
- भारतीय पुरातत्व के जन्मदाता - अलेक्ज़ेंडर कनिंघम (1861)
- 1921 में भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक- सर जॉन मार्शल
जॉन मार्शल के अंतर्गत प्रमुख उत्खनन
वर्ष खोजकर्ता खोज स्थल
1921 रायबहादुर दयाराम साहनी हड़प्पा
1922 राखालदास बनर्जी मोहनजोदड़ो
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार
महत्वपूर्ण तथ्य
- हड़प्पा सभ्यता का वर्तमान क्षेत्रफल - 15,02,097 वर्ग किलोमीटर
- हड़प्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल - 12,99,600 वर्ग किलोमीटर
- हड़प्पा सभ्यता का बढ़ा हुआ क्षेत्रफल(12,02,097वर्ग किलोमीटर ) समकालीन मिस्र की नील नदी घाटी तथा सुमेरिया (इराक) की सभ्यता से अधिक है
- सर्वाधिक 175 स्थल प्राप्त हुए है -घग्घर-हकरा (सरस्वती घाटी )
- सिंधु घाटी क्षेत्र में प्राप्त स्थल - 86
- हड़प्पा सभ्यता के स्थलों की संख्या -1401
सिन्धुघाटी सभ्यता के प्रमुख खोज
- मातृदेवी (प्रथ्वी देवी )
- स्थान - हड़प्पा
- शेली - सेंधव शेली
- विशेष :
- हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति में एक स्त्री की गर्भ से निकलता हुआ पोधा दिखाया गया है |
- संभवतः यह प्रथ्वी देवी (मातृदेवी) की प्रतिमा है | इसका संबंध पोंधों के जन्म तथा वृद्धि से रहा होगा |
- हड़प्पा के लोग इसे प्रथ्वी की उर्वरता देवी मानते थे | इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिसप्रकार मिस्र के लोग आइसिस की पूजा करते थे |
पारदर्शी वस्त्र में नर्तकी
- विशेष :
- सिन्धु कला का श्रेष्ठ नमूना
- नर्तकी के गले में पड़े हार के अलावा पारदर्शी वस्त्र है |
पशुपति मुहर (आधशिव)
- स्थान - मोहनजोदड़ो
- विशेष
- इसमें त्रिमुखी पुरुष को एक चौकी के ऊपर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया हैं।
- उसके सिर में सिंह है तथा कलाई से कंधे तक उसकी दोनों भुजाएं चूड़ियों से युक्त है।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति के मुहर पर बेल का चित्र अंकित नहीं है।
- स्थान - मोहनजोदड़ो
- विशेष
पुरोहित राजा की मूर्ति
- स्थान- मोहनजोदड़ो
- निर्माण -सेलखड़ी (कांचली मिट्टी) से निर्मित
- विशेष
- दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति (पुरोहित की प्रतिमा)
- इसमें राजा की दाढ़ी करीने से सवारी गई है लेकिन मुंछे नहीं है।
नर्तकी की नग्न मूर्ति- स्थान - मोहनजोदड़ो
- धातु - कांसा
- शैली- सेंधव शैली
- विशेष
- सिंधु कला का श्रेष्ठ नमूना
- नर्तकी के गले में पड़े हार के अलावा पूर्णत: नग्न है ।
- सिर के पीछे उसके बालों की चोटी लटे एक बुनी हुई पट्टीका द्वारा सवारी गई है।
- सिर पीछे की ओर झुकाएं ,आंखें झुकी हुई, दाएं भुजाएं कुल्हे पर टिकाए तथा बाएं भुजा नीचे की ओर लटकी हुई ।
- यह मूर्ति स्थित मुद्रा को दर्शाती है।
स्वास्तिक चिन्ह युक्त मुहर
- स्थान - मोहनजोदड़ो
- विशेष
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर का पर स्वास्तिक चिन्ह का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीक माना जाता है
- हिंदू धर्म में आज भी स्वास्तिक को पवित्र मांगलिक चिन्ह माना जाता है
सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रमुख नगर
हड़प्पा
- खोज - 19 21
- खोजकर्ता - रायबहादुर दयाराम साहनी
- भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक -सर जॉन मार्शल
- स्थान - जिला -मोंटगोमरी (शाहिवाल),प्रांत-पंजाब,पाकिस्तान
- नदी -रावी
- विशेष
- हड़प्पा सभ्यता का सर्वप्रथम उल्लेख -1826: चार्ल्स मिशन
- हड़प्पा सभ्यता की दूसरी राजधानी
- हड़प्पा सभ्यता का दूसरा बड़ा नगर
- चूँकि हड़प्पा की खोज सबसे पहले हुई इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं |
मोहनजोदड़ो (प्रेतों का टीला/ दुर्ग टीला /स्तूप टीला /मृतकों का टीला )
- मोहनजोदड़ो का अर्थ - मृतकों का टीला
- अन्य नाम -दुर्ग टीला/स्तूप टीला/प्रेतों का टीला
- खोज -1922
- खोजकर्ता - राखलदास बनर्जी
- भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक - सर जॉन मार्शल
- स्थान - जिला-लकराना, प्रांत -सिंध, पाकिस्तान
- नदी - सिंधु
- विशेष
- हड़प्पा सभ्यता की राजधानी
- हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर
- इसे सिंध का बाग या नखलिस्तान भी कहते हैं
- पक्की ईंटों का प्रयोग 4:2:1
- किले को दुर्गीकृत करने का साक्ष्य नही मिलता है
- प्रेतों का टीला -किसी कब्रिस्तान का उल्लेख नहीं है सामूहिक नर कंकालों का उल्लेख मिला है|
चन्हुड़ो - खोज - 1931
- खोजकर्ता - गोपाल मजूमदार
- स्थान -प्रांत सिंध पाकिस्तान
- नदी -सिंधु
- विशेष
- औद्योगिक नगर
- एकमात्र पुरास्थल जहां से वक्राकार ईट मिली है
कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां )- कालीबंगा का अर्थ - काले रंग की चूड़ियां
- खोज -1951
- खोजकर्ता -अमलानंद लाल,व्रजवासी घोष, B .k थापर
- स्थान - जिला -हनुमानगढ़, राजस्थान
- नदी -घग्गर (प्राचीन- सरस्वती)
- विशेष -शल्यक्रिया के प्राचीन साक्ष्य
रोपण- खोज -1953
- खोजकर्ता -यज्ञदत्त शर्मा (1950-व्रजवासी लाल, 1953 -यज्ञदत्त शर्मा )
- स्थान - जिला -रोपड़, पंजाब
- नदी -सतलज
- आधुनिक नाम -रूपनगर
रंगपुर - खोज -1953
- खोजकर्ता -रंगनाथ राव,माधव स्वरूप वत्स
- स्थान -जिला -काठियावाड़ (सौराष्ट्र क्षेत्र ),गुजरात
- नदी -भादर
लोथल - खोज -1957
- खोजकर्ता -रंगनाथ राव
- स्थान -जिला -अहमदाबाद ,गुजरात
- नदी -भोगवा
- विशेष
- औद्योगिक नगर
- बंदरगाह नगर या पत्तन नगर
- यहां मिश्र व मेसोपोटामिया से जहाज आते थे
- यहां अग्निपूजा प्रचलित थी (अग्नि देवी के साक्ष्य)
आलमगीरपुर- खोज -1958
- खोजकर्ता -यज्ञदत्त शर्मा
- स्थान - जिला -मेरठ ,उत्तर प्रदेश
- नदी -हिंडन (यमुना की सहायक नदी)
राखीगढ़ी - खोज -1969
- खोजकर्ता -सूरजभान
- स्थान - जिला- हिसार ,हरियाणा
- नदी -घग्गर (सरस्वती)
बनावली- खोज -1973
- खोजकर्ता -रविंद्र सिंह बिष्ट
- स्थान -जिला -हिसार, हरियाणा
- नदी -घग्गर (सरस्वती)
मांडा - खोज -1982
- खोजकर्ता -जगपति जोशी
- स्थान -जिला -जम्मू ,जम्मू कश्मीर
- नदी - चिनाब
धोलावीरा - धोलावीरा का अर्थ - सफ़ेद कुआं (पालिशदार श्वेत पत्थर की अधिकता)
- खोज -1990
- खोजकर्ता - रविंद्र सिंह बिष्ट
- स्थान - जिला -कच्छ ,गुजरात
खंभात क्षेत्र- खोज -2002
- खोजकर्ता - कतिरोली
- स्थान - जिला -काठियावाड़, गुजरात
- नदी -साबरमती
- विशेष -सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे नवीनतम क्षेत्र
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का जीवन
- परिवार : मातृसत्तात्मक
- शासन व्यवस्था :प्रजातांत्रिक
वास्तुकला
- भवन निर्माण की कला को वास्तुकला कहते हैं
- भारत में वास्तुकला की शुरुआत सिंधु घाटी वासियों ने की थी
- सिंधु घाटी एक नगरीय सभ्यता थी
- समकोण - सड़के समकोण पर काटती हुई बनाई गई थी जिसके किनारे नालियां नालियों की उत्तम व्यवस्था थी|
- प्राचीर - नगर सुरक्षा हेतु मजबूत प्राचीर बनाए गए थे
- घरों का निर्माण
- सड़कों के किनारे एक सीध में
- घरों में कई कमरे ,रसोईघर ,स्नानघर, तथा बीच में आंगन की व्यवस्था थी|
धार्मिक जीवन - प्राकृतिक के उपासक
- मुख्य इष्ट देव - मातृ देवी (भूमि )
- अन्य देवता
- कूबड़ वाला बैल (विशेष पूजनीय)
- पशुपति
- पीपल वृक्ष
- पवित्र पशु - कूबड़ वाला बैल
- पवित्र वृक्ष - पीपल
- पवित्र पक्षी -कबूतर
- नारी के गर्भ से पौधा उगते साक्ष्य प्राप्त | धरती की उर्वरता को देवी मानकर पूजा जाता था |
धार्मिक मत - जादू - टोना
- तबिजो का प्रयोग
- मूर्ति पूजा आदि का चलन था, किंतु मंदिरों का निर्माण नहीं होता था
- पशु बलि प्रथा
- भूत प्रेत एवं तंत्र - मंत्र में विश्वास
- पुनर्जन्म में विश्वास
- पर्दा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति प्रचलित थी |
आर्थिक जीवन (अर्थव्यवस्था )
कृषि- विश्व में सबसे पहले कपास की खेती -भारत (मोहनजोदड़ो )
- चावल नहीं उगाते थे
- सिंचाई पद्धति :रहित
पशुपालन - बैल , गाय , बकरी , भैंस , भेड़ , गधे , ऊँट आदि का पालन
- घोड़े से अपरिचित थे , सुरकोतड़ा से घोड़े के अस्थि अवशेष प्राप्त हुए |
- गाय के अवशेष प्राप्त नहीं हुए |
व्यापार - जल व थल दोनों मार्गो से व्यापार होता था |
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करते थे -
- पारस (दिलमुन या बहरीन तथा मकरान तट से )
- मेसोपोटामिया
- मिश्र
- रोम
- अफगानिस्तान
- दक्षिण भारत
- प्रमुख आयत
- टिन ,चांदी :अफगानिस्तान
- लजवाई, मणि ,नीलरतन : बदख्शा (अफगानिस्तान)
- सोना :कोलर (कर्नाटक),अफगानिस्तान
- तांबा :खेतड़ी (राजस्थान)
- सिंधु घाटी से कपास रोम में निर्यात होता था | यूनानी लोग इसे सिंडॉन व मेसोपोटामिया के लोग इसे महुआ कहते थे |
- माप - तोल :16 के आवर्तक (1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 160, 320)
- मुहर :चौकोर
मृत्यु संस्कार
सिंधु सभ्यता में मृतकों के अंतिम संस्कार की तीन प्रथा प्रचलित थी :
- दाह संस्कार
- पूर्ण समाधिकरण
- आंशिक समाधिकरण
लिपि
- लिपि : चित्राक्षर
- पढ़ने में सफलता प्राप्त नहीं हुई |
- लिपि की जानकारी का मुख्य स्रोत मुहरे हैं |
- सामान्यतः माना जाता है कि सिंधु लिपियां लिखी जाती थी - दाएं से बाएं
- सिंधु लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार व्यक्त किया -1873 अलेक्जेंडर कनिंघम
1873 - अलेक्जेंडर कनिंघम ने विचार व्यक्त किया कि इस लिपि का संबंध ब्राह्मी लिपि से है- सिंधु लिपि को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास किया - 1925 : L.A .वैडेल
- स्थान- मोहनजोदड़ो
- निर्माण -सेलखड़ी (कांचली मिट्टी) से निर्मित
- विशेष
- दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति (पुरोहित की प्रतिमा)
- इसमें राजा की दाढ़ी करीने से सवारी गई है लेकिन मुंछे नहीं है।
- स्थान - मोहनजोदड़ो
- धातु - कांसा
- शैली- सेंधव शैली
- विशेष
- सिंधु कला का श्रेष्ठ नमूना
- नर्तकी के गले में पड़े हार के अलावा पूर्णत: नग्न है ।
- सिर के पीछे उसके बालों की चोटी लटे एक बुनी हुई पट्टीका द्वारा सवारी गई है।
- सिर पीछे की ओर झुकाएं ,आंखें झुकी हुई, दाएं भुजाएं कुल्हे पर टिकाए तथा बाएं भुजा नीचे की ओर लटकी हुई ।
- यह मूर्ति स्थित मुद्रा को दर्शाती है।
- स्थान - मोहनजोदड़ो
- विशेष
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर का पर स्वास्तिक चिन्ह का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीक माना जाता है
- हिंदू धर्म में आज भी स्वास्तिक को पवित्र मांगलिक चिन्ह माना जाता है
सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रमुख नगर
हड़प्पा
- खोज - 19 21
- खोजकर्ता - रायबहादुर दयाराम साहनी
- भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक -सर जॉन मार्शल
- स्थान - जिला -मोंटगोमरी (शाहिवाल),प्रांत-पंजाब,पाकिस्तान
- नदी -रावी
- विशेष
- हड़प्पा सभ्यता का सर्वप्रथम उल्लेख -1826: चार्ल्स मिशन
- हड़प्पा सभ्यता की दूसरी राजधानी
- हड़प्पा सभ्यता का दूसरा बड़ा नगर
- चूँकि हड़प्पा की खोज सबसे पहले हुई इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं |
मोहनजोदड़ो (प्रेतों का टीला/ दुर्ग टीला /स्तूप टीला /मृतकों का टीला )
- मोहनजोदड़ो का अर्थ - मृतकों का टीला
- अन्य नाम -दुर्ग टीला/स्तूप टीला/प्रेतों का टीला
- खोज -1922
- खोजकर्ता - राखलदास बनर्जी
- भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक - सर जॉन मार्शल
- स्थान - जिला-लकराना, प्रांत -सिंध, पाकिस्तान
- नदी - सिंधु
- विशेष
- हड़प्पा सभ्यता की राजधानी
- हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर
- इसे सिंध का बाग या नखलिस्तान भी कहते हैं
- पक्की ईंटों का प्रयोग 4:2:1
- किले को दुर्गीकृत करने का साक्ष्य नही मिलता है
- प्रेतों का टीला -किसी कब्रिस्तान का उल्लेख नहीं है सामूहिक नर कंकालों का उल्लेख मिला है|
चन्हुड़ो
- खोज - 1931
- खोजकर्ता - गोपाल मजूमदार
- स्थान -प्रांत सिंध पाकिस्तान
- नदी -सिंधु
- विशेष
- औद्योगिक नगर
- एकमात्र पुरास्थल जहां से वक्राकार ईट मिली है
कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां )
- कालीबंगा का अर्थ - काले रंग की चूड़ियां
- खोज -1951
- खोजकर्ता -अमलानंद लाल,व्रजवासी घोष, B .k थापर
- स्थान - जिला -हनुमानगढ़, राजस्थान
- नदी -घग्गर (प्राचीन- सरस्वती)
- विशेष -शल्यक्रिया के प्राचीन साक्ष्य
रोपण
- खोज -1953
- खोजकर्ता -यज्ञदत्त शर्मा (1950-व्रजवासी लाल, 1953 -यज्ञदत्त शर्मा )
- स्थान - जिला -रोपड़, पंजाब
- नदी -सतलज
- आधुनिक नाम -रूपनगर
रंगपुर
- खोज -1953
- खोजकर्ता -रंगनाथ राव,माधव स्वरूप वत्स
- स्थान -जिला -काठियावाड़ (सौराष्ट्र क्षेत्र ),गुजरात
- नदी -भादर
लोथल
- खोज -1957
- खोजकर्ता -रंगनाथ राव
- स्थान -जिला -अहमदाबाद ,गुजरात
- नदी -भोगवा
- विशेष
- औद्योगिक नगर
- बंदरगाह नगर या पत्तन नगर
- यहां मिश्र व मेसोपोटामिया से जहाज आते थे
- यहां अग्निपूजा प्रचलित थी (अग्नि देवी के साक्ष्य)
आलमगीरपुर
- खोज -1958
- खोजकर्ता -यज्ञदत्त शर्मा
- स्थान - जिला -मेरठ ,उत्तर प्रदेश
- नदी -हिंडन (यमुना की सहायक नदी)
राखीगढ़ी
- खोज -1969
- खोजकर्ता -सूरजभान
- स्थान - जिला- हिसार ,हरियाणा
- नदी -घग्गर (सरस्वती)
बनावली
- खोज -1973
- खोजकर्ता -रविंद्र सिंह बिष्ट
- स्थान -जिला -हिसार, हरियाणा
- नदी -घग्गर (सरस्वती)
मांडा
- खोज -1982
- खोजकर्ता -जगपति जोशी
- स्थान -जिला -जम्मू ,जम्मू कश्मीर
- नदी - चिनाब
धोलावीरा
- धोलावीरा का अर्थ - सफ़ेद कुआं (पालिशदार श्वेत पत्थर की अधिकता)
- खोज -1990
- खोजकर्ता - रविंद्र सिंह बिष्ट
- स्थान - जिला -कच्छ ,गुजरात
खंभात क्षेत्र
- खोज -2002
- खोजकर्ता - कतिरोली
- स्थान - जिला -काठियावाड़, गुजरात
- नदी -साबरमती
- विशेष -सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे नवीनतम क्षेत्र
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का जीवन
- परिवार : मातृसत्तात्मक
- शासन व्यवस्था :प्रजातांत्रिक
वास्तुकला
- भवन निर्माण की कला को वास्तुकला कहते हैं
- भारत में वास्तुकला की शुरुआत सिंधु घाटी वासियों ने की थी
- सिंधु घाटी एक नगरीय सभ्यता थी
- समकोण - सड़के समकोण पर काटती हुई बनाई गई थी जिसके किनारे नालियां नालियों की उत्तम व्यवस्था थी|
- प्राचीर - नगर सुरक्षा हेतु मजबूत प्राचीर बनाए गए थे
- घरों का निर्माण
- सड़कों के किनारे एक सीध में
- घरों में कई कमरे ,रसोईघर ,स्नानघर, तथा बीच में आंगन की व्यवस्था थी|
धार्मिक जीवन
- प्राकृतिक के उपासक
- मुख्य इष्ट देव - मातृ देवी (भूमि )
- अन्य देवता
- कूबड़ वाला बैल (विशेष पूजनीय)
- पशुपति
- पीपल वृक्ष
- पवित्र पशु - कूबड़ वाला बैल
- पवित्र वृक्ष - पीपल
- पवित्र पक्षी -कबूतर
- नारी के गर्भ से पौधा उगते साक्ष्य प्राप्त | धरती की उर्वरता को देवी मानकर पूजा जाता था |
धार्मिक मत
- जादू - टोना
- तबिजो का प्रयोग
- मूर्ति पूजा आदि का चलन था, किंतु मंदिरों का निर्माण नहीं होता था
- पशु बलि प्रथा
- भूत प्रेत एवं तंत्र - मंत्र में विश्वास
- पुनर्जन्म में विश्वास
- पर्दा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति प्रचलित थी |
आर्थिक जीवन (अर्थव्यवस्था )
कृषि
- विश्व में सबसे पहले कपास की खेती -भारत (मोहनजोदड़ो )
- चावल नहीं उगाते थे
- सिंचाई पद्धति :रहित
पशुपालन
- बैल , गाय , बकरी , भैंस , भेड़ , गधे , ऊँट आदि का पालन
- घोड़े से अपरिचित थे , सुरकोतड़ा से घोड़े के अस्थि अवशेष प्राप्त हुए |
- गाय के अवशेष प्राप्त नहीं हुए |
व्यापार
- जल व थल दोनों मार्गो से व्यापार होता था |
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करते थे -
- पारस (दिलमुन या बहरीन तथा मकरान तट से )
- मेसोपोटामिया
- मिश्र
- रोम
- अफगानिस्तान
- दक्षिण भारत
- प्रमुख आयत
- टिन ,चांदी :अफगानिस्तान
- लजवाई, मणि ,नीलरतन : बदख्शा (अफगानिस्तान)
- सोना :कोलर (कर्नाटक),अफगानिस्तान
- तांबा :खेतड़ी (राजस्थान)
- सिंधु घाटी से कपास रोम में निर्यात होता था | यूनानी लोग इसे सिंडॉन व मेसोपोटामिया के लोग इसे महुआ कहते थे |
- माप - तोल :16 के आवर्तक (1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 160, 320)
- मुहर :चौकोर
मृत्यु संस्कार
सिंधु सभ्यता में मृतकों के अंतिम संस्कार की तीन प्रथा प्रचलित थी :
- दाह संस्कार
- पूर्ण समाधिकरण
- आंशिक समाधिकरण
लिपि
- लिपि : चित्राक्षर
- पढ़ने में सफलता प्राप्त नहीं हुई |
- लिपि की जानकारी का मुख्य स्रोत मुहरे हैं |
- सामान्यतः माना जाता है कि सिंधु लिपियां लिखी जाती थी - दाएं से बाएं
- सिंधु लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार व्यक्त किया -1873 अलेक्जेंडर कनिंघम
1873 - अलेक्जेंडर कनिंघम ने विचार व्यक्त किया कि इस लिपि का संबंध ब्राह्मी लिपि से है
- सिंधु लिपि को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास किया - 1925 : L.A .वैडेल
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